विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दपंचदश अध्यायअधश्चोध्र्वं प्रसृतास्तस्य शाखा इस संसार-वृक्ष की तीनों गुणों के द्वारा बढ़ी हुई विषय और भोगरूप कोपलोंवाली शाखाएँ नीचे और ऊपर सर्वत्र फैली हुई हैं। नीचे की ओर कीट-पतंगपर्यन्त और ऊपर देवभाव से लेकर ब्रह्मापर्यन्त सर्वत्र फैली हुई हैं तथा केवल मनुष्य-योनि में कर्मों के अनुसार बाँधनेवाली हैं, अन्य सभी योनियाँ भोग भोगने के लिये हैं। मनुष्य-योनि ही कर्मों के अनुसार बन्धन तैयार करती है। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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