विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दचतुर्दश अध्यायसत्वं सुखे सन्जयति रजः कर्मणि भारत। अर्जुन! सत्वगुण सुख में लगाता है, शाश्वत परमसुख की धारा में लगाता है, रजोगुण कर्म में प्रवृत्त करता है और तमोगुण ज्ञान को आच्छादित करके प्रमाद में अर्थात् अन्तःकरण की व्यर्थ चेष्टाओं में लगाता है। जब गुण एक ही स्थान पर एक ही हृदय में हैं तो अलग-अलग कैसे विभक्त हो जाते हैं? इस पर योगेश्वर श्रीकृष्ण बताते हैं- |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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