विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दत्रयोदश अध्याययदा भूतपृथग्भावमेक स्थमनुपश्यति। जिस काल में मनुष्य भूतों के न्यारे-न्यारे भावों को एक परमात्मा में प्रवाहित, स्थित देखता है तथा उस परमात्मा से ही सम्पूर्ण भूतों का विस्तार देखता है, उस समय वह ब्रह्म को प्राप्त होता है। जिस क्षण यह अवस्था आ गयी, उसी क्षण वह ब्रह्म को प्राप्त होता है। यह लक्षण भी स्थितप्रज्ञ महापुरुष का ही है। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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