विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दत्रयोदश अध्यायय एवं वेत्ति पुरुषं प्रकृतिं च गुणैः सह। इस प्रकार पुरुष को और गुणों के सहित प्रकृति को जो मनुष्य साक्षात्कार के साथ विदित कर लेता है, वह सब प्रकार से बरतता हुआ भी फिर नहीं जन्मता अर्थात् उसका पुनर्जन्म नहीं होता। यही मुक्ति है। अभी तक योगेश्वर श्रीकृष्ण ने ब्रह्म और प्रकृति की प्रत्यक्ष जानकारी के साथ मिलनेवाली परमगति अर्थात् उसका पुनर्जन्म से निवृत्ति पर प्रकाश डाला और अब वे उस योग पर बल देते हैं जिसकी प्रक्रिया है आराधना; क्योंकि इस कर्म को कार्यरूप दिये बिना कोई पाता नहीं।
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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