यथार्थ गीता -अड़गड़ानन्द पृ. 60

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यथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्द

द्वितीय अध्याय


जब मैटर क्षेत्र में पैदा होने वाली कोई वस्तु इस सनातन का स्पर्श नहीं कर सकती, तो छूने-खाने से सनातन-धर्म नष्ट कैसे हो सकता है? यह धर्म नहीं, एक कुरीति-परिस्थिति थी, जिससे भारत में साम्प्रदायिक वैमनस्य बढ़ा, देश का विभाजन हुआ और राष्ट्रीय एकता की आज भी समस्या बनी हुई है।

इन कुरीतियों के कथानक इतिहास में भ्रे पड़े हैं। हमीरपुर जिले में पचास-साथ परिवार कुलीन क्षत्रिय थे। आज वे सब मुसलमान हैं। न उन पर तोप का हमला हुआ, न तलवार का। हुआ क्या? अर्द्धरात्रि में दो-एक मौलवी उस गाँव के एकमात्र कुएँ के समीप छिप गये कि कर्मकाण्डी ब्राह्मण सबसे पहले यहाँ स्नान करने आयेगा। जहाँ वे आये तो उन्हें पकड़ लिया, उनका मुँह बन्द कर दिया। उनके सामने उन्होंने कुएँ से पानी निकाला, मुँह लगाकर पिया और बचा हुआ पानी कुएँ में डाल दिया। रोटी का एक टुकड़ा भी डाल दिया। पण्डित जी देखते ही रह गये, विवश थे। तत्पश्चात् पण्डित जी को भी साथ लेकर वे चले गये। अपने घर में उन्हें बन्द कर दिया।

दूसरे दिन उन्होंने हाथ जोड़कर पण्डित जी से भोजन के लिये निवेदन किया तो वे बिगड़ पड़े- “अरे, तुम यवन हो मैं ब्राह्मण, भला कैसे खा सकता हूँ?” उन्होंने कहा- “महाराज! हमें आप-जैसे विचारवान् लोगों की बड़ी आवश्यकता है। क्षमा करें।” पण्डित जी को छोड़ दिया गया।


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टीका-टिप्पणी और संदर्भ

सम्बंधित लेख

यथार्थ गीता -अड़गड़ानन्द
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ सं.
प्राक्कथन
1. संशय-विषाद योग 1
2. कर्म जिज्ञासा 37
3. शत्रु विनाश-प्रेरणा 124
4. यज्ञ कर्म स्पष्टीकरण 182
5. यज्ञ भोक्ता महापुरुषस्थ महेश्वर 253
6. अभ्यासयोग 287
7. समग्र जानकारी 345
8. अक्षर ब्रह्मयोग 380
9. राजविद्या जागृति 421
10. विभूति वर्णन 473
11. विश्वरूप-दर्शन योग 520
12. भक्तियोग 576
13. क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विभाग योग 599
14. गुणत्रय विभाग योग 631
15. पुरुषोत्तम योग 658
16. दैवासुर सम्पद्‌ विभाग योग 684
17. ॐ तत्सत्‌ व श्रद्धात्रय विभाग योग 714
18. संन्यास योग 746
उपशम 836
अंतिम पृष्ठ 871

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