विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दद्वादश अध्याय
अद्वेष्टा सर्वभूतानां मैत्रः करुण एव च। इस प्रकार शान्ति को प्राप्त हुआ जो पुरुष सब भूतों में द्वेषभाव से रहित, सबका प्रेमी और हेतुरहित दयालु है और जो ममता से रहित, अहंकार से रहित, सुख-दुःख की प्राप्ति में सम तथा क्षमावान् है, सन्तुष्टः सततं योगी यतात्मा दृढ़निश्चयः। जो निरन्तर योग की पराकाष्ठा से संयुक्त है, लाभ तथा हानि में सन्तुष्ट है, मन तथा इन्द्रियोंसहित शरीर को वश में किये हुए है, दृढ़ निश्चयवाला है, वह मझमें अर्पित मन-बुद्धिवाला मेरा भक्त मुझे प्रिय है। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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