विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दएकादश अध्यायश्रीभगवानुवाच महात्मा श्रीकृष्ण ने कहा-अर्जुन! मेरा यह रूप देखने को अतिदुर्लभ है, जैसा कि तूने देखा है; क्योंकि देवता भी सदा इस रूप के दर्शन की इच्छा रखते हैं। वस्तुतः सभी लोग सन्त को पहचान ही नहीं पाते। ‘पूज्य सत्संगी महाराज’ अन्तःप्रेरणावाले पूर्ण महापुरुष थे; लेकिन लोग उन्हें पागल समझते रहे। किसी-किसी पुण्यात्मा को आकाशवाणी हुई कि ये सद्गुरु हैं; केवल उन्होंने उन्हें हृदय से पकड़ा, उनके स्वरूप को पाया और अपनी गति पा ली। यही श्रीकृष्ण कहते हैं कि जिनके हृदय में दैवी सम्पद् जागृत है, वे देवता भी सदा इस रूप के दर्शन की आकांक्षा रखते हैं। तो क्या यज्ञ, दान अथवा वेदाध्ययन से आप देखे जा सकते हैं? वह महात्मा कहते हैं- |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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