विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दद्वितीय अध्यायवेदाविनाशिनं नित्यं य एनमजमव्ययम्। पार्थिव शरीर को रथ बनाकर ब्रह्मरूपी लक्ष्य पर अचूक निशाना लगाने वाला पृथापुत्र अर्जुन! जो पुरुष इस आत्मा को नाशरहित, नित्य, अजन्मा और अव्यक्त जानता है, वह पुरुष कैसे किसी को मरवाता है और कैसे किसी को मारता है? अविनाशी का विनाश असम्भव है। अजन्मा जन्म नहीं लेता। अतः शरीर के लिये शोक नहीं करना चाहिये। इसी को उदाहरण से स्पष्ट करते हैं- |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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