यथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्ददशम अध्यायनान्तोऽस्ति मम दिव्यानां विभूतीनां परन्तप। परंतप अर्जुन! मेरी दिव्य विभूतियों का अन्त नहीं है। अपनी विभूतियों का विस्तार तो मैंने संक्षेप में कहा है, वस्तुतः वे अनन्त हैं। इस अध्याय में कुछ ही विभूतियों का स्पष्टीकरण किया गया है; क्योंकि अगले ही अध्याय में अर्जुन इन सबको देखना चाहता है। प्रत्यक्ष दर्शन से ही विभूतियाँ समझ में आती हैं। विचारधारा समझने के लिये इसी से थोड़ा अर्थ दिया गया।
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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