यथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्ददशम अध्यायवृष्णीनां वासुदेवोऽस्मि पाण्डवानां धनन्जयः। वृष्णिवंश में मैं वासुदेव अर्थात् सर्वत्र वास करनेवाला देव हूँ। पाण्डवों में मैं धनंजय हूँ। पुण्य ही पाण्डु है और आत्मिक सम्पत्ति ही स्थिर सम्पत्ति है। पुण्य से प्रेरित होकर आत्मिक सम्पत्ति को अर्जित करनेवाला धनंजय मैं हूँ। मुनियों में मैं व्यास हूँ। परमतत्त्व को व्यक्त करने की जिसमें क्षमता है, वह मुनि मैं हूँ। कवियों में उशना अर्थात् उसमें प्रवेश दिलानेवाला काव्यकार मैं हूँ। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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