यथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्ददशम अध्यायउच्चैः श्रवसमश्वानां विद्धि माममृतोद्भवम्। घोड़ों में मैं अमृत से उत्पन्न होने वाला उच्चैःश्रवा नामक घोड़ा हूँ। दुनिया में हर वस्तु नाशवान् है। आत्मा ही अजर-अमर, अमृतस्वरूप है। इस अमृतस्वरूप से जिसका संचार है, वह घोड़ा मैं हूँ। घोड़ा गति का प्रतीक है। आत्मतत्त्व को ग्रहण करने में मन जब उधर गति पकड़ता है, घोड़ा है। ऐसी गति मैं हूँ। हाथियों में ऐरावत नामक हाथी मैं हूँ। मनुष्यों में राजा मुझको जान। वस्तुतः महापुरुष ही राजा है, जिसके पास अभाव नहीं है। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
सम्बंधित लेख
अध्याय | अध्याय का नाम | पृष्ठ सं. |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज