यथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दनवम अध्यायअध्याय दो में योगेश्वर श्रीकृष्ण ने कहा- अर्जुन! इस योग में बीज का नाश नहीं होता। इसका थोड़ा भी साधन जन्म-मरण के महान् भय से उद्धार कर देता है। छठें अध्याय में अर्जुन ने पूछा-भगवन् शिथिल प्रयत्नवाला साधक इष्ट-भ्रष्ट तो नहीं हो जाता? श्रीकृष्ण ने बताया-अर्जुन! पहले तो कर्म समझना आवश्यक है और समझने के बाद थोड़ा भी साधन पार लग गया तो उसका किसी जन्म में कभी विनाश नहीं होता, बल्कि उस थोड़े से अभ्यास के प्रभाव से हर जन्म में वही करता है। अनेक जन्मों के परिणाम में वहीं पहुँच जाता है, जिसका नाम परमगति अर्थात् परमात्मा है। उसी को योगेश्वर श्रीकृष्ण यहाँ भी कहते हैं कि यह साधन करने में बड़ा सुगम और अविनाशी है; परन्तु इसके लिये श्रद्धा नितान्त आवश्यक है। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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