विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दषष्ठम अध्यायअथवा योगिनामेव कुले भवति धीमताम्। अथवा वहाँ जन्म न मिलने पर भी स्थिरबुद्धि योगियों के कुल में वह प्रवेश पा जाता है। श्रीमानों के घर में पवित्र संस्कार बचपन से ही मिलते लगते है; किन्तु वहाँ जन्म न हो पाने पर वह योगियों के कुल में (घर में नहीं) शिष्य-परम्परा में प्रवेश पा जाता है। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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