यथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दपंचम अध्याय
कामक्रोधवियुक्तानां यतीनां यतचेतसाम्। काम और क्रोध से रहित, जीते हुए चित्तवाले, परमात्मा का साक्षात्कार किये हुए ज्ञानी पुरुषों के लिये सब ओर से शान्त परब्रह्म ही प्राप्त है। बार-बार योगेश्वर श्रीकृष्ण उस पुरुष की रहनी पर बल दे रहे हैं, जिससे प्रेरणा मिले। प्रश्न लगभग पूर्ण हुआ। अब वे पुनः बल देते हैं कि इस स्थिति को प्राप्त करने का आवश्यक अंग ‘श्वास-प्रश्वास का चिन्तन’ है। यज्ञ की प्रक्रिया में प्राण में अपान का हवन, अपान में प्राण का हवन, प्राण और अपान दोनों की गति का निरोध उन्होंने बताया है, उसी को समझा रहे हैं-
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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