मेरे तो गिरधर गोपाल -रामसुखदास पृ. 55

मेरे तो गिरधर गोपाल -स्वामी रामसुखदास

8. साधक, साध्य तथा साधन

Prev.png

अब इन तीन बातों पर गम्भीरतापूर्वक विचार करें। पहली बात है- मेरा कुछ भी नहीं है। इसको स्वीकार करने के लिये साधक को इस बात का मनन करना चाहिये कि हम अपने साथ क्या लाये हैं और अपने साथ क्या ले जायँगे? मनन करने से साधक को पता लगेगा कि हम अपने साथ कुछ लाये नहीं और अपने साथ कुछ ले जा सकते नहीं। तात्पर्य यह निकला कि जो वस्तु मिलने और बिछुड़ने वाली है, वह हमारी नहीं हो सकती। जो वस्तु उत्पन्न और नष्ट होने वाली है, वह हमारी नहीं हो सकती। जो वस्तु आने और जाने वाली है, वह हमारी नहीं हो सकती। कारण कि स्वयं मिलने-बिछुड़ने वाला, उत्पन्न-नष्ट होने वाला, आने-जाने वाला नहीं है। अतः सिद्ध हुआ कि अनन्त ब्रह्माण्डो में तिल-जितनी वस्तु भी हमारी नहीं है।

दूसरी बात है- मेरे को कुछ नहीं चाहिये। साधक को विचार करना चाहिये कि जब संसार में कोई वस्तु मेरी है ही नहीं, तो फिर मेरे को क्या चाहिये? शरीर को अपना मानने से ही चाह पैदा होती है कि हमें रोटी चाहिये, जल चाहिये, कपड़ा चाहिये, मकान चाहिये आदि-आदि। साधक इस बात पर विचार करे कि शरीर से अलग होकर मेरे को क्या चाहिये? तात्पर्य है कि जब साधक इस सत्य को स्वीकार कर लेता है कि मेरा कुछ भी नहीं है, तब वह इस सत्य को स्वीकार करने में समर्थ हो जाता है कि मेरे को कुछ नहीं चाहिये।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

मेरे तो गिरधर गोपाल -रामसुखदास
क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः