विषय सूची
मेरे तो गिरधर गोपाल -स्वामी रामसुखदास
4. मानव शरीर का सदुपयोग
शरीर और शरीरी के विभाग को जानने वाले मनुष्य बहुत कम हैं। इसलिये सत्संग के द्वारा इस विभाग को जानने की खास जरूरत है। शरीर जड़ है और स्वयं (आत्मा) चेतन है। स्वयं परमात्मा का अंश है और शरीर प्रकृति का अंश है। चेतन अलग है और जड़ अलग है। मुक्ति चेतन की होगी, जड़ की नहीं; क्योंकि बन्धन चेतन ने स्वीकार किया है। जड़ तो हरदम बदल रहा है और नाश की तरफ जा रहा है। हमारी जितनी उम्र बीत गयी है, उतने दिन तो हम मर ही गये हैं। ‘मरना’ शब्द भले ही खराब लगे, पर बात सच्ची है। जन्म के समय जीने के जितने दिन बाकी थे, उतने दिन अब बाकी नहीं रहे। जितने दिन बीत गये, उतने दिन तो मर गये, अब कितने दिन बाकी हैं, इसका पता नहीं है। जीवन का जो समय चला गया, नष्ट हो गया, वह जड़-विभाग में हुआ है, चेतन-विभाग में नहीं। चेतन-विभाग में मृत्यु नहीं है। उसकी कोई उम्र नहीं है। वह अमर है। शरीर मरता है, आत्मा नहीं मरता। इस प्रकार आरम्भ से ही जड़-चेतन के विभाग को समझ लेना चाहिये। जो चेतन-विभाग है, वह परमात्मा का है और जो जड़-विभाग है, वह प्रकृति का है। गीता में आया है-
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 13। 19
संबंधित लेख
क्रम संख्या | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज