भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती पृ. 5

श्री भीष्म पितामह -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती

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वंश परिचय और जन्म

राजा ने गंगा की बात मान ली और बड़ी प्रसन्नता से उन्हें रथ पर बैठाकर वे अपनी राजधानी में ले आये। दोनों ही बड़े सुख से रहने लगे। शान्तनु ने अपनी प्रतिज्ञा के कारण उनसे उनके बारे में कुछ भी नहीं पूछा। पत्नी के चरित्र, आचरण, उदारता और सेवा से उन्हें बड़ी प्रसन्नता हुई और सुख-शान्ति से अपना जीवन व्यतीत करने लगे। समय बीतते देर नहीं लगती। सुख का समय तो बहुत शीघ्र बीत जाता है। अनेकों वर्ष बीत गये, परंतु राजा को वे बहुत थोड़े से दिनों से ही प्रतीत हुए। क्रमश: सात बालक हुए और गंगा यह कहकर कि मैं तुम्हें प्रसन्न करने के लिये ऐसा करती हूँ, उन्हें अपने जल में फेंक देतीं। राजा को गंगा का यह काम बहुत ही अप्रिय मालूम होता, परंतु गंगा के चली जाने के भय से वे कुछ कह नहीं सकते थे। जब आठवां बालक हुआ, तब भी गंगा हँसती हुई उसे फेंकने के लिये चलीं, परंतु राजा इस बार अपने को संभाल नहीं सके। उन्होंने उस पुत्र की जान बचाने के लिये गंगा से कहा- 'अरे राम, तुम कौन हो? इस प्रकार निष्ठुरता के साथ अपने ही बच्चों की हत्या करते समय तुम्हारा हृदय फट नहीं जाता, तुम हत्याकारिणी हो, पापिनी हो। तुम्हारा नाम क्या है तनिक बताओ तो?' गंगा ने कहा-'महाराज! आप इस पुत्र को रखना चाहें तो खुशी से रखें। मैं अब इसे नहीं मारुँगी, इस पुत्र के कारण आप श्रेष्ठ पिता कहे जायेंगे। अब मैं आपके पास नहीं रहुँगी.अब मेरे रहने की अवधि पूरी हो गयी। मेरे पिता राजर्षि जहनु हैं, मेरा नाम गंगा है, बड़े-बड़े महर्षि मेरी सेवा करते हैं, देवताओं का कार्य सिद्ध करने के लिये मैं इतने दिनों तक आपके पास रही। ये आठों पुत्र वसु देवता हैं। वशिष्ठ के शाप से इन्हें मनुष्य-योनि में जन्म लेना पड़ा था। इनकी इच्छा के अनुसार आप इनके पिता हुए और मैं माता हुई। इनकी प्रार्थना से ही मैंने इन्हें अपने जल में डाल दिया है कि ये इस योनि से शीघ्र ही मुक्त हो जायें। वसुओं से मैंने एक पुत्र जीवित रहने की प्रतिज्ञा करा ली थी। अब यह पुत्र जीवित रहेगा, अब मैं चली। अभी तो मैं इसे अपने साथ लिये जा रही हूँ। वहाँ यह अध्ययन करेगा, कुछ सीखेगा और सयाना होने पर आपके पास चला आयेगा।' इतना कहकर आठवें कुमार को लेकर गंगा देवी अन्तर्धान हो गयीं। वे ही धुनाम के वसु शान्तनु के पुत्र होकर देवव्रत और आगे चलकर भीष्म के नाम से प्रसिद्ध हुए।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. वंश परिचय और जन्म 1
2. पिता के लिये महान् त्याग 6
3. चित्रांगद और विचित्रवीर्य का जन्म, राज्य भोग, मृत्यु और सत्यवती का शोक 13
4. कौरव-पाण्डवों का जन्म तथा विद्याध्यन 24
5. पाण्डवों के उत्कर्ष से दुर्योधन को जलन, पाण्डवों के साथ दुर्व्यवहार और भीष्म का उपदेश 30
6. युधिष्ठिर का राजसूय-यज्ञ, श्रीकृष्ण की अग्रपूजा, भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण के स्वरुप तथा महत्तव का वर्णन, शिशुपाल-वध 34
7. विराट नगर में कौरवों की हार, भीष्म का उपदेश, श्रीकृष्ण का दूत बनकर जाना, फिर भीष्म का उपदेश, युद्ध की तैयारी 42
8. महाभारत-युद्ध के नियम, भीष्म की प्रतिज्ञा रखने के लिये भगवान् ने अपनी प्रतिज्ञा तोड़ दी 51
9. भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण का माहात्म्य कथन, भीष्म की प्रतिज्ञा-रक्षा के लिये पुन: भगवान् का प्रतिज्ञा भंग, भीष्म का रण में पतन 63
10. श्रीकृष्ण के द्वारा भीष्म का ध्यान,भीष्म पितामह से उपदेश के लिये अनुरोध 81
11. पितामह का उपदेश 87
12. भीष्म के द्वारा भगवान् श्रीकृष्ण की अन्तिम स्तुति और देह-त्याग 100
13. महाभारत का दिव्य उपदेश 105
अंतिम पृष्ठ 108

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