गोपी गीत -करपात्री महाराज पृ. 59

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गोपी गीत -करपात्री महाराज

गोपी गीत 1

वस्तुतः सूक्ष्म जगत् ही मूल तत्त्व है; इस मूल तत्त्व, सूक्ष्म जगत् का प्रसरण ही स्थूल जगत् है। पुण्डरीकाकार-हृत्-पिण्ड के मध्य में दहर आकाश है। ‘यावान् वा अयमाकाशः’ बाह्याकाश की तरह ही हृत्-पुण्डरीकान्तर्गत दहराकाश भी अत्यन्त विस्तृत है। इस दहराकाश में ही सम्पूर्ण विश्व-प्रपन्च सूक्ष्मरूप से विद्यमान है। श्रीमद्भागवत में परात्पर परब्रह्म के इस अघटित-घटना-पटीयान् स्वात्मयोग को ही सर्वाधिक महत्त्व दिया गया है। नन्दगेहिनी यशोदा रानी भी अपने बालक पुत्र श्रीकृष्ण के मुखारविन्द में सम्पूर्ण व्रज के साथ ही साथ अपने को और स्वयं बालक कृष्ण को भी देखकर भयभीत हो विचारने लगती हैं। ‘अथो अमुष्यैव ममार्भकस्य यः कश्चनौत्पत्तिक आत्मयोगः’[1] अर्थात् यदि प्रतिबिम्बन्यायानुसार ही श्रीकृष्णचन्द्र के मुखारविन्द में विश्व-प्रपन्च दृष्ट हो रहा है तो भी दर्पण में स्वयं कदापि प्रतिबिम्बित नहीं होता; साथ ही, इस घटना में आसुरी, तामसी अथवा दैवी-माया की भी कल्पना सम्भव नहीं अतः निश्चय ही मेरे इस बालक में जो ये सब चमत्कार हैं वे सब उसके ही औत्पत्तिक अघटित-घटना-पटीयान्-स्वात्मयोग के कारण की सम्भव हो रहे हैं। परब्रह्म प्रभु के इस अघटित-घटना-पटीयान्-स्वात्मयोग के द्वारा ही सम्पूर्ण चेतनाचेतनात्मक विश्व-प्रपन्च की प्रतीति हो रही है। एतावता ‘विष्णुमयं जगत’ ही तथ्य है तथापि भगवत्-प्राकट्य का अभाव होने पर इस तथ्यपूर्ण अभिव्यक्ति का भी गौणार्थ हो जाता है, उसमें असम्भावना एवं अप्रामाण्य-दोष आ जाता है। ‘न तस्य हेतुभिस्त्राणमुत्पतन्नेव यो हतः।’ अर्थात् जो उत्पादन-काल में ही हत हो गया हो उसका संत्राण सम्भव नहीं। एतावता ‘तव जन्मना व्रजोऽधिकं जयति।’ हे प्रभो! आपके आविर्भाव से इस दोष का सम्पूर्णतः परिष्कार हो गया; स्वभावतः उत्कर्ष को प्राप्त गोष्ठ किंवा व्रज-पद-वाच्य, मन्त्र-ब्राह्मणात्मक वेद-राशि प्रभु के प्रत्यक्षीकरण से अधिकाधिक उत्कर्ष को प्राप्त हो रहा है। चित्सुखाचार्य कृत मंगलाचरण है-

‘स्तम्भाभ्यन्तर गर्भभाव निगद व्याख्यात तद्वैभवो
यः पन्चानन पान्चजन्यवपुषा व्यादिष्टविश्वात्मतः।
प्रह्लादाभिहितार्थ तत्क्षणमिलद्दृष्टप्रमाणं हरिः
सोऽव्याद्वः शरदिन्दुसुन्दरतनुः सिंहाद्रिचूडामणिः।।’

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 10।8।40

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गोपी गीत
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. भूमिका 1
2. प्रवेशिका 21
3. गोपी गीत 1 23
4 गोपी गीत 2 63
5. गोपी गीत 3 125
6. गोपी गीत 4 154
7. गोपी गीत 5 185
8. गोपी गीत 6 213
9. गोपी गीत 7 256
10. गोपी गीत 8 271
11. गोपी गीत 9 292
12. गोपी गीत 10 304
13. गोपी गीत 11 319
14. गोपी गीत 12 336
15. गोपी गीत 13 364
16. गोपी गीत 14 389
17. गोपी गीत 15 391
18. गोपी गीत 16 412
19. गोपी गीत 17 454
20. गोपी गीत 18 499
21. गोपी गीत 19 537

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