गीत गोविन्द -जयदेव पृ. 6

श्रीगीतगोविन्दम्‌ -श्रील जयदेव गोस्वामी

श्रीश्रीगुरु-गौरांगौ जयत:

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प्रस्तावना

(ड़)

अधिकन्तु इन सब रस ग्रन्थों का अनुशीलन करने के लिए स्थान की बात भी अभिव्यक्त हुई है। श्रीमन्महाप्रभु साधारण स्थान में साधारण लोगों के समाज में जो संकीर्तन करते, वह केवल नाम संकीर्तन तथा रस संकीर्तन गम्भीरा (गुप्त-गृह) में केवल श्रीस्वरूप दामोदर गोस्वामी एवं राय रामानन्द के साथ ही करते। श्रीधाम नवद्वीप में भी यही नियम था। वहाँ भी संकीर्तन होता था। किन्तु रात में श्रीनिवास के घर में द्वार बन्द करके होता था। जगद्गुरु श्रीगौरांग देवक यही सर्वश्रेष्ठ शिक्षा है। अधिकारी होकर इस ग्रन्थ का गुप्त रूप से अनुशीलन करो। इससे तुम्हारा परम कल्याण होगा और प्रेमभक्ति के अधिकारी होओगे। अन्यथा भक्त और भगवान के निकट अपराधी होकर तुम अध:पतित हो जाओगे। भगवान श्रीकृष्ण शक्तिमान हैं और श्रीमती राधिका उनकी पराशक्ति हैं।[1] श्रीराधिका एवं श्रीकृष्ण की लीला शक्ति और शक्तिमान की लीला है। कामगन्धहीन अप्राकृत प्रेम की लीला है। यह बात तो बहुत से लोग जानते हैं एवं जिन ग्रन्थों में यह लोकपावनी लीला लिपिबद्ध हुई है, भक्ति अनुष्ठान के अनुष्ठान के अंग के रूप में उसका वे अनुशीलन भी करना चाहते हैं। किन्तु संस्कृत भाषा में अनभिज्ञ होने के कारण उसका भावार्थ के साथ पाठ नहीं कर पाते। श्रीगीतगोविन्द का वर्तमान संस्करण उनके अर्थबोध और भावबोध दोनोंमें यथेष्ट सहायता करेगा।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सच्चिदानन्द पूर्ण कृष्णेर स्वरूप।
    एकई चिच्छक्ति तार धरे तिन रूप॥
    आनन्दांशे ह्लादिनी सदंशे सन्धिनी।
    चिदंशे संवित् जारे ज्ञान करि जान॥
    ह्लादिनीर सार प्रेम, प्रेमसार भाव।
    भावेर पराकाष्ठा नाम महाभाव॥
    महाभाव-स्वरूपा श्रीराधा ठाकुरणी।
    सर्वगुणखनि कृष्णकान्ता-शिरोमणि॥

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सर्ग नाम पृष्ठ संख्या
प्रस्तावना 2
प्रथम सामोद-दामोदर: 19
द्वितीय अक्लेश केशव: 123
तृतीय मुग्ध मधुसूदन 155
चतुर्थ स्निग्ध-मधुसूदन 184
पंचम सकांक्ष-पुण्डरीकाक्ष: 214
षष्ठ धृष्ठ-वैकुण्ठ: 246
सप्तम नागर-नारायण: 261
अष्टम विलक्ष-लक्ष्मीपति: 324
नवम मुग्ध-मुकुन्द: 348
दशम मुग्ध-माधव: 364
एकादश स्वानन्द-गोविन्द: 397
द्वादश सुप्रीत-पीताम्बर: 461

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