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श्रीगीतगोविन्दम् -श्रील जयदेव गोस्वामी
एकादश: सर्ग:
सामोद-दामोदर:
विंश: सन्दर्भ:
20. गीतम्
स्मर-शर-सुभग-नखेन सखीमवलम्ब्य करेण सलीलम्। अनुवाद- तुम्हारे करकमल के रमणीय पञ्चनख रति-रणोपयोगी मदन के पंचबाण स्वरूप हैं। इनसे अपनी सखी का आश्रय करके तुम लीलापूर्वक चलो। प्रख्यात शीलमय श्रीहरि को भी अपने वलय की क्वणित ध्वनि से अवबोध करा दो। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ अन्वय- स्मर-शर-सुभग-नखेन (स्मरस्य कामस्य शराइव सुभगा: शोभना नखा यस्य तादृशेन, तव पञ्च नखा एव सम्मोहनादीनि कामास्त्राणि इतिभाव:) करेण (हस्तेन) सलीलं (सविलासं यथा तथा) सखीम् अवलम्ब्य चल (गच्छ) [गत्वाच] वलयक्वणितै: (कंणसिञ्जनै:) निजगतिशीलं (निजगतौ त्वत्प्राप्तौ शीलं समाधि: चित्तैकाग्रतेति यावत यस्य तादृशं हरिमपि (हरिञ्च) अवबोधय (ज्ञापय, रणाय सावधानं कुरु इति भाव:) [समीचीनो योद्धाहि प्रतिभटमवहितं कृत्वैव युध्यते इत्यर्थ:] ॥7॥
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