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श्रीगीतगोविन्दम् -श्रील जयदेव गोस्वामी
अष्टम: सर्ग:
विलक्ष्यलक्ष्मीपति:
सप्तदश: सन्दर्भ:
17. गीतम्
पद्यानुवाद बालबोधिनी- पुन: श्रीराधा ने कहा यह तो आपकी स्वभावसिद्धता ही है कि वनों में आप अबलाओं को 'ग्रसने' के लिए, उनका बध करने के लिए ही घूमते हैं, मेरा भी बध कर रहे हो तो इसमें वैचित्र ही क्या है? आपने तो अपने बाल्यकाल में ही कंस-भगिनी, युद्धप्रिया पूतना का वध कर ख्याति पायी है, तो मेरी जैसी अबला का बध करना तो कितना आसान है। जब ऐसी प्रबला आपके द्वारा कालकवलित हो गयी, तो मेरी जैसी अबला का बध करने में आश्चर्य ही क्या है? शास्त्रों में स्त्री-बध निषिद्ध कहा गया है, निन्दनीय माना गया है, पर आपकी यह नृशंसता तो जन्मसिद्ध ही है। कृपाकर चले जाओ। अब तो आप युवक हैं, ऐसी स्थिति में मुझ जैसी स्त्री का बध करने में आपको कोई प्रयास भी नहीं करना पड़ेगा। हे निष्ठुर! अब रहने भी दो। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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