गीता प्रबोधनी -रामसुखदास पृ. 202

गीता प्रबोधनी -स्वामी रामसुखदास

दसवाँ अध्याय

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पुरोधसां च मुख्यं मां विद्धि पार्थ बृहस्पतिम् ।
सेनानीनामहं स्कन्द: सरसामस्मि सागर: ॥24॥

हे पार्थ! पुरोहितों में मुख्य बृहस्पति को मेरा स्वरूप समझो। सेनापतियों में कार्तिकेय और जलाशयों में समुद्र मैं हूँ।

महर्षीणां भृगुरहं गिरामस्म्येकमक्षरम् ।
यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि स्थावराणां हिमालय ॥25॥

महर्षियों में भृगु और वाणियों (शब्दों) में एक अक्षर अर्थात प्रणव मैं हूँ। सम्पूर्ण यज्ञों में जपयज्ञ और स्थिर रहने वालों में हिमालय मैं हूँ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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