गीता प्रबोधनी -रामसुखदास पृ. 196

गीता प्रबोधनी -स्वामी रामसुखदास

दसवाँ अध्याय

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अर्जुन उवाच
परं ब्रह्म परं धाम पवित्रं परमं भवान् ।
पुरुषं शाश्वतं दिव्यमादिदेवमजं विभुम् ॥12॥
आहुस्त्वामृषय: सर्वे देवर्षिर्नारदस्तथा ।
असितो देवलो व्यास: स्वयं चैव ब्रवीषि मे ॥13॥

अर्जुन बोले- परम ब्रह्म, परम धाम और महान पवित्र आप ही हैं। आप शाश्वत, दिव्य पुरुष, आदिदेव, अजन्मा और सर्वव्यापक हैं- ऐसा आप को सब-के-सब ऋषि, देवर्षि नारद, असित, देवल तथा व्यास कहते हैं और स्वयं आप भी मेरे प्रति कहते हैं।

व्याख्या- निगुर्ण-निराकार के लिये ‘परं ब्रह्म’, सगुण-निराकार के लिये ‘परं धाम’ और सगुण-साकार के लिये ‘पवित्रं परमं भगवान’ पदों का प्रयोग करके अर्जुन भगवान से मानो यह कहते हैं कि समग्र परमात्मा आप ही हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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