गीता प्रबोधनी -स्वामी रामसुखदास
नवाँ अध्याय
अहं क्रतुरहं यज्ञ: स्वधाहमहमौषधम् । व्याख्या- उपर्युक्त श्लोकों को देखते हुए साधक यह बात दृढ़ता से स्वीकार कर ले कि कार्य-कारणरूप से स्थूल-सूक्ष्मरूप जो कुछ देखने, समझने और मानने में। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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