गीता प्रबोधनी -स्वामी रामसुखदास
नवाँ अध्याय
मोघाशा मोघकर्माणो मोघज्ञाना विचेतस: । व्याख्या- जो मनुष्य अपना स्वार्थ सिद्ध करने में लगे रहते हैं, दूसरों के दुःख की परवाह नहीं करते, वे ‘आसुरी’ स्वभाव वाले होते हैं। जो स्वार्थ सिद्धि में बाधा लगने पर क्रोधवश दूसरों का नाश कर देते हैं, वे ‘राक्षसी’ स्वभाव वाले होते हैं। जो बिना किसी कारण के दूसरों को कष्ट पहुँचाते हैं, वे ‘मोहिनी’ स्वभाव वाले होते हैं। आसुरी, राक्षसी और मोहिनी-तीनों ही स्वभाव वाले मनुष्य आसुरी सम्पत्ति के अन्तर्गत आ आते हैं, जो चौरासी लाख योनियों तथा नरकों की प्राप्ति कराने वाली है। महात्मानस्तु मां पार्थ दैवीं प्रकृतिमाश्रिता: । व्याख्या- जो जिसके महत्त्व को जितना अधिक जानता है, वह उतना ही उसमें लग जाता है। जिन्होंने भगवान् को ही सर्वोपरि मान लिया है, वे दैवी स्वभाव वाले महात्मा पुरुष भगवान में ही लग जाते हैं। भोग तथा संग्रह की तरफ उनकी वृत्ति कभी जाती ही नहीं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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