गीता प्रबोधनी -स्वामी रामसुखदास
आठवाँ अध्याय
नैते सृती पार्थ जानन्योगी मुह्यति कश्चन । व्याख्या- सकाम (भोग तथा संग्रह की कामना वाला) मनुष्य ही मोहित होता अर्थात जन्म-मरण में जाता है। शुक्ल और कृष्ण मार्ग को जानने वाला मनुष्य निष्काम (योगी) हो जाता है, इसलिये वह जन्म-मरण में नहीं जाता अर्थात कृष्ण मार्ग को प्राप्त नहीं होता। वेदेषु यज्ञेषु तप:सु चैव दानेषु यत्पुण्यफलं प्रदिष्टम् । व्याख्या- पूर्वश्लोक में शुक्ल और कृष्ण-दोनों गतियों का उपसंहार करके अब भगवान यहाँ पूरे अध्याय का उपसंहार करते हैं। वेदाध्ययन, यज्ञ, तप, दान आदि जितने भी पुण्यकर्म हैं, उनका अधिक-से-अधिक फल ब्रह्मलोक की प्राप्ति होना है, जहाँ से पुनः लौटकर संसार में आना पड़ता है, परन्तु भगवान का आश्रय लेने वाला भक्त उस ब्रह्मलोक का भी अतिक्रमण करके परमधाम को प्राप्त हो जाता है, जहाँ से पुनः लौटकर संसार में नहीं आना पड़ता। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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