गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण पृ. 673

गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण

अध्याय-9
राजविद्या-राजगुह्य-योग
Prev.png

(16)
अहं क्रतुरहं यज्ञ:
स्वधाहमहमौषधम् ।
मन्त्रोऽहमहमेव
आज्यमहमग्निरहं हुतम् ॥

मैं ही क्रतु[1] हूँ मैं ही यज्ञ[2] हूँ
मैं ही अग्नि घृत व मंत्र हूँ।
मैं ही स्वधा[3] तथा औषध[4]हूँ
मैं ही हवनाऽहुति क्रिया हूँ।।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. श्रोत यज्ञ: ज्यातिष्टोम आदि पशु यज्ञ
  2. स्मार्त्त पंच महायज्ञ
  3. पितरों को अर्पण करने का अन्न
  4. वनस्पति व समस्त प्रकार का अन्न

संबंधित लेख

गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
- गीतोपदेश के पश्चात भागवत धर्म की स्थिति 1
- भूमिका 66
- महर्षि श्री वेदव्यास स्तवन 115
- श्री गणेश वन्दना 122
1. अर्जुन विषाद-योग 126
2. सांख्य-योग 171
3. कर्म-योग 284
4. ज्ञान-कर्म-संन्यास योग 370
5. कर्म-संन्यास योग 474
6. आत्म-संयम-योग 507
7. ज्ञान-विज्ञान-योग 569
8. अक्षर-ब्रह्म-योग 607
9. राजविद्या-राजगुह्य-योग 653
10. विभूति-योग 697
11. विश्वरूप-दर्शन-योग 752
12. भक्ति-योग 810
13. क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ-विभाग-योग 841
14. गुणत्रय-विभाग-योग 883
15. पुरुषोत्तम-योग 918
16. दैवासुर-संपद-विभाग-योग 947
17. श्रद्धात्रय-विभाग-योग 982
18. मोक्ष-संन्यास-योग 1016
अंतिम पृष्ठ 1142

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः