गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण
पूर्वाभास
अध्याय 7 में उन्हीं बातों का स्पष्टीकरण किया गया है जो पाँचवी व छठे अध्याय में कही गई है। वह इस प्रकार हैंः- (1) कर्म संन्यास के विषय में सांख्य का कहना है किः- “परमेश्वर का ज्ञान होने पर जब कर्म बन्धन नहीं होता तो कर्म का स्वरूपतः त्याग करके परमेश्वर का ज्ञान प्राप्त करना ही श्रेष्ठ है।” सांख्य के इस कर्म-संन्यास के विपरीत भगवान कृष्ण ने ज्ञान विज्ञान का उपदेश देकर यह समझाया है किः- “जिस उपाय व विधि के द्वारा कर्म करते रहने पर भी परमेश्वर का ज्ञान प्राप्त हो जाता है, और कर्म बन्धन से छुटकारा मिलकर मोक्ष मिल जाती है उस उपाय व विधि को “ज्ञान विज्ञान” कहा है और यही अध्याय 7 का प्रतिपाद्य विषय है। (2) वासना को शुद्ध व पवित्र रखने का जो उपदेश अध्याय 6 में दिया है उसी की विधि अध्याय 7 में वासना को शुद्ध रखने की बताई है। और (3) त्रिगुणात्मक प्रकृति का विवेचन किया है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
अध्याय | अध्याय का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज