गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण पृ. 568

गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण

अध्याय-7
पूर्वाभास
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अध्याय 7 में उन्हीं बातों का स्पष्टीकरण किया गया है जो पाँचवी व छठे अध्याय में कही गई है। वह इस प्रकार हैंः-

(1) कर्म संन्यास के विषय में सांख्य का कहना है किः- “परमेश्वर का ज्ञान होने पर जब कर्म बन्धन नहीं होता तो कर्म का स्वरूपतः त्याग करके परमेश्वर का ज्ञान प्राप्त करना ही श्रेष्ठ है।” सांख्य के इस कर्म-संन्यास के विपरीत भगवान कृष्ण ने ज्ञान विज्ञान का उपदेश देकर यह समझाया है किः- “जिस उपाय व विधि के द्वारा कर्म करते रहने पर भी परमेश्वर का ज्ञान प्राप्त हो जाता है, और कर्म बन्धन से छुटकारा मिलकर मोक्ष मिल जाती है उस उपाय व विधि को “ज्ञान विज्ञान” कहा है और यही अध्याय 7 का प्रतिपाद्य विषय है।

(2) वासना को शुद्ध व पवित्र रखने का जो उपदेश अध्याय 6 में दिया है उसी की विधि अध्याय 7 में वासना को शुद्ध रखने की बताई है। और

(3) त्रिगुणात्मक प्रकृति का विवेचन किया है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
- गीतोपदेश के पश्चात भागवत धर्म की स्थिति 1
- भूमिका 66
- महर्षि श्री वेदव्यास स्तवन 115
- श्री गणेश वन्दना 122
1. अर्जुन विषाद-योग 126
2. सांख्य-योग 171
3. कर्म-योग 284
4. ज्ञान-कर्म-संन्यास योग 370
5. कर्म-संन्यास योग 474
6. आत्म-संयम-योग 507
7. ज्ञान-विज्ञान-योग 569
8. अक्षर-ब्रह्म-योग 607
9. राजविद्या-राजगुह्य-योग 653
10. विभूति-योग 697
11. विश्वरूप-दर्शन-योग 752
12. भक्ति-योग 810
13. क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ-विभाग-योग 841
14. गुणत्रय-विभाग-योग 883
15. पुरुषोत्तम-योग 918
16. दैवासुर-संपद-विभाग-योग 947
17. श्रद्धात्रय-विभाग-योग 982
18. मोक्ष-संन्यास-योग 1016
अंतिम पृष्ठ 1142

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