गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण
अध्याय-4
ज्ञान-कर्म-संन्यास योग
ज्ञान-कर्म-संन्यास योग
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ अध्याय 3 श्लोक 14 में जो कहा गया है कि “समुद्भव” यज्ञ का होता कर्म से” उसी निरूपण का पुष्टिकरण यहाँ यह कह कर किया है कि इन यज्ञों को कर्म से उत्पन्न होने वाले जानो अर्थात् यज्ञ कर्म से निष्पन्न होता है और कर्म, शरीर, मन तथा इन्द्रियों से होता है अथवा किया जाता है।
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