(39)
एषा तेऽभिहिता सांख्ये
बुद्धिर्योगे त्विमां श्रृणु।
बुद्धया युक्तो यया पार्थ
कर्मबन्धं प्रहास्यसि।।
(39)
तुम्हें बताया सांख्य-योग[1] को
अब बुद्धि-योग[2] में सुनो इसी को।
युक्त जिस बुद्धि से तुम पार्थ! हो
करोगे प्रहासित[1] कर्म-बन्ध को।।
।। श्लोक 39 से 41 का भावार्थ ।।
(1) तुम्हें बताया....सांख्य-योग को”-
श्लोक 38 तक सांख्य-निष्ठा अथवा ज्ञाननिष्ठा के यह सिद्धान्त प्रतिपादित किए गए हैं-
- मृत का या जीवित का पण्डित-जन सोच नहीं करते;[2]
- आत्मा सत् व अज-अमर है शरीर नाशवान है; [3]
- अव्यक्त से व्यक्त सृष्टि का निर्माण होता है और प्रलय होने पर व्यक्त सृष्टि अव्यक्त में लय हो जाती है, [4]
- चातुर्यवर्ण व्यवस्था (जो सांख्य मार्ग को भी मान्य है) के अनुसार युद्ध करना क्षत्रिय का स्वधर्म-रूप कर्तव्य-कर्म है[5]
- साम्य-बुद्धि से युद्ध करने पर हत्या का पाप नहीं लगता वह धर्म-युद्ध ही है।[6]
(2) बुद्धि-योग-
कर्म-योग निष्ठा का यह मत है कि ज्ञान प्राप्ति के पश्चात् भी संन्यास ग्रहण न कर निष्काम बुद्धि से कर्म करते रहना चाहिए यही ‘बुद्धि-योग’ है।
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