गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण
अध्याय- 1
(अर्जुन विषाद-योग)
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(44)
उत्सन्न कुलधर्माणां
मनुष्याणां जनार्दन।
नरकेऽनियतं वासो
भवतीत्यनुशुश्रुम।।
(44)
सुनते सदा से यही हैं जनार्दन!
कि होता कुल-धर्म जिनका नष्ट है।
कुल-धर्मोत्सन्न[1] वे सब ही जन
करते चिरकाल नरक-वास[2] हैं।।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ नष्ट हो गया है कुल-धर्म जिनका।
- ↑ नरक का वर्णन अ. 16 श्लोक 21 में देखो।
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