गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण
महर्षि श्री वेदव्यास स्तवन
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(9)
यदि वेद-व्यास तुम होते नहीं
तो कौरव-पाण्डव होते नहीं।
महाभारत युद्ध भी होता नहीं
महाभारत काव्य भी बनता नहीं।।
यह महाकाव्य तुम रचते नहीं।
लेखक भी गजानन बनते नहीं।।
(10)
यदि गीता भागवत होती नहीं
तो भारत संस्कृति बचती नहीं।
वर्ण-भेद मिट जाता कभी का
दिखते ऋषि-ब्राह्मण कहीं नहीं।।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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