गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण
अध्याय-18
मोक्ष-संन्यास-योग
मोक्ष-संन्यास-योग
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ अहम् भाव, जो कुछ हूँ सो मैं हूँ
- ↑ करता हत न होता निबद्धः-
जिस व्यक्ति को न तो अहम्-भाव होता है और न आसक्ति होती है उसके द्वारा किए हुए कर्म वायु-अग्नि व जल के कर्मों के समान होते हैं; जैसे वायु-अग्नि या जल से मृत्यु हो जाने पर भी इनको हत्या का पाप नहीं लगता वैसे ही आसक्ति तथा अहंकार रहित हिंसा का पाप मनुष्य को नहीं लगता।
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