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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
चतुर्थं शतकम्
(वह कुण्ड) श्रीराधाकृष्ण की कामतृष्णा के अपार सिन्धु की महावृद्धि करता है। (हे कुण्ड!) श्रीवृन्दावन-विनोदी युगलकिशोर का अत्याश्चर्यमय केलि-वैदग्धिसमूह मुझे (भी) बताओ- दिखाओ-यह मेरी प्रार्थना है।।112।।
श्रीवृन्दावन में मधुर-मधुर गुंजनकारी मनोहर भंवरों से संव्याप्त स्वर्णकमलियों के वन में श्रीराधा के मुख (कमल) की भ्रान्ति में कमलों को चुम्बनकारी प्रियतम को श्रीराधा अपने मुख-चुम्बन की आश्वसना देते हुये हंसी।।113।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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