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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
चतुर्थं शतकम्
जल में क्रीड़ा परायण रसिकयुगल की उत्तम निकुंज शोभित हैं; अथवा सखीमण्डली को भी विस्मित करने वाला रत्नमय अति सुन्दर गृह है; मानो वह जल से ही उत्पन्न हुआ है; और चारों दिशाओं में ऊपर नीचे स्वच्छ सुन्दर रत्नभूमि पर अभीष्ट उपकरण (सामग्री) सुसज्जित है एवं भीतर भी दिव्य पुष्पों से पूर्ण हो रहा है।।110।।
अहो! महामणिमय उज्ज्वल चारों तटों पर लतामण्डप में विचित्र अलंकारों के द्वारा (वह कुण्ड) अत्यन्त आश्चर्यजनक हो रहा है, एवं विचित्र अनेक पंक्तिमय प्रफुल्लित कदम्ब की भाँति अद्भुत छटारूप अमृमतय वृक्षों की समृद्धि-शोभा से अद्भुत प्रतीत हो रहा है।।111।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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