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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
तृतीय शतकम्
जिन्होंने (जीवन में) एकबार भी श्रीवृन्दावन के फूल को सूँघा है, वहाँ की वायु व्यक्ति का दर्शन किया है, उसका मंगलमय मधुर नाम एक बार भी उच्चारण किया है, वे कीकट (बिहार) आदि देश में शरीर त्यागने पर भी शीघ्र ही-श्रेष्ठ मुनिगण जिसकी वन्दना करते हैं, इस श्रीवृन्दावन धाम को प्राप्त होंगे संशय नहीं है।।28।।
जहाँ लक्ष्मी और ब्रह्मादि को भी विमोहित करने वाले एकमात्र कामकला रंग की माहन मूर्त्ति गौरश्याम श्रीयुगलकिशोर विराजमान हैं, जहाँ सर्वानन्दराशि से भी अधिक चमत्कारी महादुर्लभ कोई (अनिर्वचनीय) प्रेमरस प्रवाहित हो रहा है, सर्वस्व त्यागकर उस श्रीवृन्दावन में आगमन कर।।29।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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