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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
तृतीय शतकम्
अहो! पष्पों के विकाशरूप हास्य से, फूलों के गुच्छरूप स्तनों से जो शोभित हैं एवं पुलकरूप सखियों से जो वेष्टित हैं- ऐसी लतायप वधुओं के द्वारा ये श्रीवृन्दावन के वृक्ष आलिंगित होकर श्रीकृष्ण के ध्यानरस में बारम्बार पुलकित हो रहे हैं एवं मधुधारा के छल से अश्रु प्रवाह कर रहे हैं, ये अपना-पराया कुछ भी नहीं जानते।।26।।
जिनके दिव्य पुष्प और पल्लव लेकर वे प्रेममूर्त्ति आति चतुरतम गौरश्याम युगलकिशोर परस्पर वेणी व चूड़ा बनाते हैं, एवं पुष्पगृह और पुष्पशय्यादि की रचना करते हैं, जिनके फल भोजन करके तथा विविध मधुपान करके वे दिव्य केलि में प्रवृत्त होते हैं, वे श्रीवन्दावन के महावृक्षराज शोभा पा रहे हैं।।27।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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