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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
तृतीय शतकम्
हे प्रभो मदनमोहन! हे प्यारे! मनोहर श्रीवृन्दावन के निकुंज भवन में पुष्प-शय्या पर मेरी प्राणेश्वरी (श्रीराधा) के साथ प्रसन्न-चित्त बैठे हुए प्रबल काम के द्वारा क्षुभित-आकुति वाले एवं मृदु मधुर मुसकानयुक्त आपकी मैं कब सेवा करूँगा?।।15।।
श्रीवृन्दावन में क्षण क्षण में शरद आ जाती है, क्षण में फिर वर्षा आ जाती है क्षण में बसन्त शोभा देता है तो क्षण पीछे किसी अन्य ऋतु का आगमन होता है। इस प्रकार सर्वदा श्रीराधाकृष्ण के किसी न किसी (अनिर्वचनीय) कौतुक को सम्पादन करने वाले एवं पद-पद पर आनन्द विधान करने वाले श्रीवृन्दावन को ही स्मरण कर।।16।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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