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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
तृतीय शतकम्
ब्रह्मज्योति पूर्ण, आनन्दघन, आश्चर्य की सीमा श्रीराधा-कृष्ण नामधारी विशुद्ध एवं आस्वादन करने योग्य प्रीति-शक्ति के बीज स्वरूप को जो श्रीवृन्दावन में भजे, वही अति धन्य है।।13।।
अहो! नव नवायमान अपूर्व कैशोर देह धारण करने वाल, अनेक प्रकार के नवीन-नवीन काम-आडम्बर प्रकट करने वाले एवं सखियों के नेत्रों को नूतन-नूतन सुख महासागर दान करन वाले, उस अभयदानकारी युगलकिशोर के मैं भी क्या इन नेत्रों के द्वारा श्रीवृन्दावन में दर्शन कर सकूँगा?।।14।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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