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श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ
श्रीरज-रसाल-लीला
(दोहा)
(सखी प्यारे कूँ ढूँढ़ती भई कुंजन की ओर गई)
(तब एक कुंज में प्रीतम कूँ देख्यौ)
(प्रीतम कूँ अपनी नैक झाँकी-सी दिखाय सखी दूसरी ओर चली) |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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