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श्रीरज-रसाल-लीला
- दियें झकाई उतहिं कूँ लपकि चली बर बाल।
- दृष्टि परी नँदलाल की उठि बैठे ततकाल।।35।।
- श्रीकृष्ण- अहो सखी! चंपकलता! मेरी कछु सुनि जाहु।
- सखी- मोय बेगि ही काज कछु, यहाँ हीं टेरि सुनाहु।।36।।
- श्रीकृष्ण- हा! हा! नियरें आइयै, तनक दयानिधि बाल।
- दरस-परस मिलिबौ कठिन मेरौ हाल बिहाल।।37।।
- सखी- काहे कूँ पैयां परौ, सुनौ रसिक-मनि स्याम।
- कहिवे-सुनिवे की कछू राखी ना घनस्याम।।38।।
- जिनके नाते सौं हुत्यौ कहिवौ-सुनिवौ लाल।
- तिन सों तुम सब भाँति सौं निपट बिगारी हाल।।39।।
- श्रीकृष्ण-
- जो तुम हूँ चंपकलता! चलीं छोड़ि या ओर।
- पियौ हलाहल आप सौं अबै कटोरा घोर।।40।।
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