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श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ
प्रेमाधीनता-रहस्य
(प्रवचन)
अहो! धन्य है या प्रेम कूँ। यह प्रेम मोकूँ अव्यक्त सौं व्यक्त तथा गुप्त सौं प्रगट करि देय है। स्वामी ते सेवक तथा साहु ते रिनियाँ बनाय देय है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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