विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दतृतीय अध्याय
अध्याय पन्द्रह में संसार सुविरूढ़ मूलवाला पीपल वृक्ष-जैसा कहा गया, जिसे असंगतारूपी शस्त्र द्वारा काटकर उस परमपद को खोजने का निर्देश मिला। आगे के अध्यायों में युद्ध का उल्लेख नहीं है। हाँ, अध्याय सोलह में असुरों का चित्रण अवश्य है, जो नरकगामी हैं। अध्याय तीन में ही युद्ध का विशद चित्रण है। श्लोक 30 से श्लोक 43 तक युद्ध का स्वरूप, उसकी अनिवार्यता, युद्ध न करनेवालों का विनाश, युद्ध में मारे जानेवाले शत्रुओं के नाम, उन्हें मारने के लिये अपनी शक्ति का आव्हान् और निश्चय ही उन्हें काटकर फेंकने पर बल दिया। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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