गीता प्रबोधनी -स्वामी रामसुखदास
चौथा अध्याय
इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम् । व्याख्या- पूर्वपक्ष-अव्यय (नित्य) तो साध्य होता है, साधन कैसे अव्यय होगा? उत्तरपक्ष- साधक ही साधन होकर साध्य में लीन होता है। अतः साधक, साधन और साध्य-तीनों ही एक होने से अव्यय हैं; परन्तु मोह के कारण तीनों अलग-अलग दीखते हैं। एवं परम्पराप्राप्तमिमं राजर्षयो विदु: । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
अध्याय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज