गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण पृ. 1086

गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण

अध्याय-18
मोक्ष-संन्यास-योग
Prev.png

चतुर्वर्ण व्यवस्था में (श्लोक 41) मानव जाति को ब्राह्मण, क्षत्री, वैश्य और शूद्र इन चार वर्णों में विभक्त किया गया है और यह विभाजन प्रकृति-जन्य गुण व स्वभाव को देखकर किया गया है और गुण व स्वभाव के अनुसार ही प्रत्येक वर्ण का कर्तव्य-कर्म भी निर्धारित किया गया है; जिनको शास्त्र-बद्ध किया जाकर शास्त्रों द्वारा प्रमाण स्वरूप् माना गया है। यदि शास्त्रों और पुराणों को प्रमाणित माना जावे तो मैत्रेय ऋषि के कथन “अर्वाक्सत्रोतस्तु नवमः क्षत्तरेकविधो नृपाम्” के अनुसार मानव सृष्टि ब्रह्मा की नवीं सृष्टि है और यह एक ही प्रकार की है। यह मानव सृष्टि रजोगुण प्रधान, कर्म-परायण और दुःख रूप विषयों में ही सुख मानने वाली होती है। (श्रीमद्भागवत तृतीय स्कन्ध अ. 10/25) अतः रजोगुण प्रधान तथा कर्म-परायण और सुख-दुःखादि विषयों में ही सुखी रहने वाली इस मूल भूत एक ही सृष्टि का विभाजन गुण-कर्म भेद के अनुसार है।

श्लोक 40 से 44 में गुण-कर्म-विभाग का वर्णन कर यहीं समझाया है कि यद्यपि मानव सृष्टि एक ही प्रकार की है किन्तु रजोगुण प्रधान व कर्म-परायण होने के कारण इसके गुण-स्वभाव व कर्मों को देखकर इसके स्रष्टा द्वारा ही इसको चार भागों में विभक्त कर दिया गया है। इन चार भागों के गुण, स्वभाव व कर्मों का वर्णन कर इन श्लोकों में यही समझाया गया है कि जिन लोगों में यह गुण, स्वभाव या कर्म दृष्टिगत हों उनको उसी श्रेणी या वर्ण में समझना चाहिए।

(श्लोक 42) में शम, दम, पवित्रता, तथा तप करना, शान्ति, स्वभाव की सरलता, ज्ञान, विज्ञान, विविध-ज्ञान व अध्यात्म-ज्ञान का परिशीलन करना, आस्तिक भावना आदि गुण व लक्षण वाला व्यक्ति ब्राह्मण वर्ग के अन्तर्गत आता है। यह गुण व लक्षण सात्त्विक तथा दैवी संपदाभिजात व्यक्ति के होते हैं (अ. 16 श्लो. 1 से 3) अतः इन उपरोक्त स्वभाव, लक्षण व गुणों से गुणान्वित व्यक्ति ब्राह्मण वर्ण की श्रेणी में आता है। (देखो अध्याय 4 श्लोक 13 व भावार्थ)

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
- गीतोपदेश के पश्चात भागवत धर्म की स्थिति 1
- भूमिका 66
- महर्षि श्री वेदव्यास स्तवन 115
- श्री गणेश वन्दना 122
1. अर्जुन विषाद-योग 126
2. सांख्य-योग 171
3. कर्म-योग 284
4. ज्ञान-कर्म-संन्यास योग 370
5. कर्म-संन्यास योग 474
6. आत्म-संयम-योग 507
7. ज्ञान-विज्ञान-योग 569
8. अक्षर-ब्रह्म-योग 607
9. राजविद्या-राजगुह्य-योग 653
10. विभूति-योग 697
11. विश्वरूप-दर्शन-योग 752
12. भक्ति-योग 810
13. क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ-विभाग-योग 841
14. गुणत्रय-विभाग-योग 883
15. पुरुषोत्तम-योग 918
16. दैवासुर-संपद-विभाग-योग 947
17. श्रद्धात्रय-विभाग-योग 982
18. मोक्ष-संन्यास-योग 1016
अंतिम पृष्ठ 1142

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः