श्रीमद्भगवद्गीता -विश्वनाथ चक्रवर्त्ती पृ. 10

Prev.png

श्रीमद्भगवद्गीता -विश्वनाथ चक्रवर्त्ती
प्रथम अध्याय

दुर्योधन- यह धृतराष्ट्र एवं गान्धारी के सौ पुत्रों में से सबसे बड़ा था। इसके जन्म के समय नाना प्रकार के अपशकुन दिखाई पड़े थे। विदुर जैसे महात्माओं ने उन अपशकुनों को देख कर ऐसी आशंका की थी कि इसके द्वारा कुरुकुल का ध्वंस होगा। महाभारत के अनुसार दुर्योधन कलि के अंश से उत्पन्न हुआ था। यह बहुत बड़ा पापी, क्रूर तथा कुरु वंश का कलंक स्वरूप था। इसके नामकरण के समय उपस्थित कुल पुरोहित एवं बड़े-बड़े ज्योतिष विशारदों ने इसके भविष्य के लक्षणों को देखकर इसका नाम दुर्योधन रखा। जीवन के अन्त समय में भगवान् श्री कृष्ण के इंगित से भीम के द्वारा इसका लोमहर्षक वध हुआ।

व्यूह -
‘समग्रस्य तु सैन्यस्य विन्यासः स्थानभेदतः।
स व्यूह इति विख्यातो युद्धेषु पृथिवीभुजाम्।।’-(शब्दरत्नावली)

युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए कुशल राजाओं के द्वारा अपनी समग्र सेना को इस प्रकार से स्थापित करना, जो विपक्ष के द्वारा सभी दिशाओं से दुर्भेद्य हो-यह व्यवस्था व्यूह के नाम से विख्यात है।

द्रोणाचार्य- ये पाण्डु पुत्रों एवं धृतराष्ट्र पुत्रों के अस्त्र-शस्त्र के आचार्य थे। ये महर्षि भारद्वाज के पुत्र थे। ‘द्रोण’ अर्थात् कलश से इनका जन्म होने के कारण ये द्रोण के नाम से प्रसिद्ध हुए। ये अस्त्र-शस्त्र विद्या की भाँति वेद-वेदांगादि शास्त्रों में भी निपुण थे। इन्होंने महर्षि परशुरामजी को प्रसन्न कर उनके निकट सरहस्य धनुर्वेदादि विद्याओं का अध्ययन किया था। ये स्वेच्छा से ही मर सकते थे, अन्यथा कोई भी उनको मार नहीं सकता था। अपने मित्र पाञ्चालराज द्रुपद के द्वारा अपमानित होकर जीविका निर्वाह के लिए हस्तिनापुर में उपस्थित हुए। इनकी योग्यता से प्रभावित हो कर भीष्म पितामह ने इन्हें दुर्योधन एवं युधिष्ठिरादि राजकुमारों की शिक्षा के लिए आचार्य पद पर नियुक्त किया था। अर्जुन इनके प्रियतम शिष्य थे। महाभारत संग्राम में राजा दुर्योधन ने अनुनय-विनय और कूटनीति पूर्वक इनको भीष्म के पश्चात् कौरव सेना का सेनापति नियुक्त किया था।।2।।

Next.png

संबंधित लेख

श्रीमद्भगवद्गीता -विश्वनाथ चक्रवर्त्ती
अध्याय नाम पृष्ठ संख्या
पहला सैन्यदर्शन 1
दूसरा सांख्यायोग 28
तीसरा कर्मयोग 89
चौथा ज्ञानयोग 123
पाँचवाँ कर्मसंन्यासयोग 159
छठा ध्यानयोग 159
सातवाँ विज्ञानयोग 207
आठवाँ तारकब्रह्मयोग 236
नवाँ राजगुह्मयोग 254
दसवाँ विभूतियोग 303
ग्यारहवाँ विश्वरूपदर्शनयोग 332
बारहवाँ भक्तियोग 368
तेरहवाँ प्रकृति-पुरूष-विभागयोग 397
चौदहवाँ गुणत्रयविभागयोग 429
पन्द्रहवाँ पुरूषोत्तमयोग 453
सोलहवाँ दैवासुरसम्पदयोग 453
सत्रहवाँ श्रद्धात्रयविभागयोग 485
अठारहवाँ मोक्षयोग 501

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः