श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य पृ. 2

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श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य
पहला अध्याय

स्वसंकल्पानुविधायिस्वरूपस्थितिप्रवृत्तिभेदाशेषशेषतैकरतिरूपनित्यनिरवद्यनिरितिशयज्ञानक्रियैश्चर्याद्यनन्तगुणगणापरिमितसूरिभिः अनवरताभिष्टुतचरणयुगलः, वाड्मनसापरिच्छेद्यस्वरूपस्वभावः, स्वोचितविविधा विचित्रानन्त भोग्यभोगोपकरणभोगस्थानसमृद्धानन्ताश्चर्यानन्तमहाविभवानन्तपरिमाणनित्यनिरवद्याक्षरपरमव्योमनिलयः, विविधविचित्रानन्तभोग्यभोक्तृवर्गपरिपूर्णनिखिलजगदुदयविभवलयलीलः, परं ब्रहा पुरुषोत्तमो नारायणो ब्रह्मादिस्थावरान्तम् अखिलं जगत् सृष्ट्टा स्वेन रूपेण अवस्थितः, ब्रह्मादिदेवमनुष्याणां ध्यानाराधनाद्यगोचरः अपि अपारकारुण्यसौशील्यवात्सल्यौदार्यमहोदधिः, स्वमेव रूपं तत्तत्सजातीयसंस्थानं स्वस्वभावम् अजहद् एव कुर्वन् तेषु तेषु लोकेषु अवतीर्य अवतीर्य तैः तैः आराधितः,
जिनके श्रीयुगल-चरणों की स्तुति, उन्हीं (भगवान्) के संकल्पानुसार स्वरूप, स्थिति और प्रवृत्ति के भेदों से सम्पन्न, पूर्ण, दास-भावयुक्त अनन्य प्रेमी नित्य निर्मल निरतिशय ज्ञान, क्रिया, ऐश्वर्य आदि अनन्त गुणसमूहों से युक्त अनेकों पार्षद-निरन्तर किया करते हैं; जिनका स्वरूप और स्वभाव मन-वचन से अतीत है; अपने ही योग्य विविध विचित्र अनन्त भोग्य, भोग-पदार्थ और भोग-स्थानों से सुसमृद्ध, अनन्त आश्चर्य, अनन्त महावैभव और अनन्त विस्तारयुक्त नित्य निर्मल क्षयरहित परम व्योम जिनका निवास-स्थान है; विविध विचित्र अनन्त भोग्य और भोक्तृवर्ग से परिपूर्ण निखिल जगत् का उद्भव, पालन और संहार जिनकी लीला है; वे परब्रह्म पुरुषोत्तम (बद्ध और मुक्त दोनों पुरुषों से उत्तम) नारायण ब्रह्मा से लेकर स्थावरपर्यन्त समस्त जगत् को रचकर अपने आचिन्त्य स्वरूप में स्थित हैं, अतः वे ब्रह्मादि देवता तथा मनुष्यों के द्वारा ध्यान और आराधना के विषय नहीं हैं, तथापि अपार कारुण्य, सौशील्य, वात्सल्य और औदार्य के महान् समुद्र होने के कारण अपने स्वभाव को न छोड़ते हुए ही वे उन-उन देव-मनुष्यों के सजातीय स्वरूप में अपने को ही प्रकट करते हुए उन-उन लोकों में पुनः-पुनः अवतार ले-लेकर उन-उन देव-मनुष्यों के द्वारा आराधित होते हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य
अध्याय पृष्ठ संख्या
अध्याय 1 1
अध्याय 2 17
अध्याय 3 68
अध्याय 4 101
अध्याय 5 127
अध्याय 6 143
अध्याय 7 170
अध्याय 8 189
अध्याय 9 208
अध्याय 10 234
अध्याय 11 259
अध्याय 12 286
अध्याय 13 299
अध्याय 14 348
अध्याय 15 374
अध्याय 16 396
अध्याय 17 421
अध्याय 18 448

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