श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य पृ. 3

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श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य
पहला अध्याय

तत्तदिष्टानुरूपं धर्मार्थकाममोक्षाख्यं फलं प्रयच्छन्, भूभारावतारणापदेशेन अस्मदादीनाम् अपि समाश्रयणीयत्वाय अवतीर्य उर्व्‍यां सकलमनुजनयविषयतां गत: परावरनिखिलजनमनोनयनहारिदिव्य चेष्टितानि कुर्वन्, पूतनाशकटयमलार्जुनारिष्टप्रलम्बधेनुककालियकेशिकुवलयापीडचाणूरमुष्टिकतोसलकंसादीन् निहत्य अनवधिकदयासौहार्दानुरागगर्भावलोकनालापामृतैः विश्वम् आप्याययन् निरतिशयसौन्दर्यसौशील्यादिगुणगणाविष्कारेण अक्रूरमालाकारादीन् परमभागवतान् कृत्वा पाण्डुतनययुद्धप्रोत्साहनव्याजेन परमपुरुषार्थलक्षणमोक्षसाधनतया वेदान्तोदितं स्वविषयं ज्ञानकर्मानुगृहीतं भक्तियोगम् अवतारयामास।
और उन-उनकी इच्छा के अनुरूप धर्म-अर्थ-काम एवं मोक्षरूप फल प्रदान करते हैं। वे ही भगवान भूमिका भार हरण करने के लिये भूमि पर अवतीर्ण होकर समस्त मनुष्यों के नेत्रगोचर हुए। तदनन्तर छोटे-बड़े सभी मनुष्यों के मन और नयनों को हरण करने वाली दिव्य लीला करते हुए उन्होंने पूतना, शकट, यमलार्जुन, अरिष्ट, प्रलम्ब, धेनुकासुर, कालिय, केशी, कुवलयापीड, चाणूर, मुष्टिक, तोसल और कंस आदि का वध करके उनका उद्धार किया; अपरिमित दया, सौहार्द और अनुराग से भरे हुए दर्शन-भाषणरूप अमृत से विश्व को तृप्त करते हुए निरतिशय सौन्दर्य और सौशील्यादि गुणसमूहों को प्रकट करके अक्रूर, मालाकार आदि को परम भक्त बनाया एवं पाण्डुपुत्र अर्जुन को युद्ध के लिये प्रोत्साहित करने के बहाने परम पुरुषार्थ मोक्ष के साधनरूप से वेदान्त में वर्णित ज्ञान-कर्म के द्वारा साध्य स्वविषयक भक्तियोग को प्रकट किया।

तत्र पाण्डवानां कुरुणां च युद्धे प्रारब्धे प्रारब्धे स भगवान् पुरुषोत्तमः सर्वेश्वरेश्वरो जगदुपकृतिमत्र्य आतिश्रतवात्सल्यविवशः पार्थ रथिनम् आत्मानं च सारथिं सर्वलोकसाक्षिकं चकार। एवम अर्जुनस्य उत्कर्ष ज्ञात्वा अपि सर्वात्मना अन्धो धृतराष्ट्रः सुयोधनविजयबुभुत्सया सञ्जयं पप्रच्छ।

वहाँ (कुरुक्षेत्र में) जब कौरव और पाण्डवों में युद्ध की तैयारी हो चुकी थी, तब जगत का उपकार करने के लिये मनुष्य रूप धारण करने वाले, सम्पूर्ण ईश्वरों के भी ईश्वर उन भगवान पुरुषोत्तम श्रीकृष्णचन्द्र ने शरणागत-वत्सलता से विवश होकर सब लोगों के सामने अर्जुन को रथी बनाया और स्वयं सारथि बने।

इस प्रकार अर्जुन की उत्कृष्टता जानकर भी सब प्रकार से अन्धे धृतराष्ट्र ने दुर्योधन का विजय-संवाद सुनने की इच्छा से संजय से पूछा-

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य
अध्याय पृष्ठ संख्या
अध्याय 1 1
अध्याय 2 17
अध्याय 3 68
अध्याय 4 101
अध्याय 5 127
अध्याय 6 143
अध्याय 7 170
अध्याय 8 189
अध्याय 9 208
अध्याय 10 234
अध्याय 11 259
अध्याय 12 286
अध्याय 13 299
अध्याय 14 348
अध्याय 15 374
अध्याय 16 396
अध्याय 17 421
अध्याय 18 448

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