श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ
श्रीकेवट लीला(नौका-विहार)
अर्थ- जो अपने आस्त्रित जनन पै सत्प्रेम (महाप्रेम) समुद्र के मधुर मकरंद रस की प्रबल धारा अनवरत रूप सौं चार्यो और ते बरसावते रहैं हैं तथा गोविंद के जीवन-धन हैं, श्रीराधिके! आपके उन चरन- कमलन कूँ मैं कब अपने माथे पै धारन करूँगौ?
हे किसोरी जू! आप हूँ संग में चलौ, स्यामसुंदर के दरसन करि आवैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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