राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 324

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीकेवट लीला

श्रीजी- सखियों! तुम ने बात तौ बहुत ही सुंदर सोची है, किंतु लोकलज्जा कौ भय है।
सखी- प्यारी! यदि लोक-लज्जा कौ भय है, तौ प्यारे के दरसन कैसैं होयँगे?
पद (राग-पटमंजरी, ताल-झप)

चलौ री, आज ब्रजराज मुख निरखियै, लोक की लाज ते काज हाक सरैगौ।
बहुरि कोई कहैगौ स्याम के ढिंग गईं, याहु सौं अधिक कोई और कहा कहैगौ।।
नाचिवे लगी तौ फेर घूँघट कहा, सूर रन चढ़े पै कौन तैं डरैगौ।
निरखियै रूप नारायन वा स्याम कौ, बहुरि ऐसौ सखी! दाव कब परैगौ।।
समाजी-

(दोहा)

दधि-माँखन बेचन चलीं सबै मटहारा गाँव।
मनमोहन सौं प्रेम है, तऊ बाम हैं बाम।।
घर-घर दधि बेचत फिरत, कोउ न बूझत बात।
ना दधि बिक्यौ न हरि मिले, लग्यौ हिये में घात।।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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